मात्र ग्रेजुएट करते ही, बिना अधिकार लिखते है डॉक्टर

जिस शब्द से इज्जत मिले उसको सभी पाना चाहते है देखने वाली बात ये है की इससे उनको कोई फर्क नहीं पड़ता है की वो उसके हक़दार है या नहीं, इसका जीता जगता उदाहरण है एक शब्द डॉक्टर इसको पाने के लिए पूरी दुनियां पिछले 1000 साल से घमाशान मचा हुवा है।

बीमारों का इलाज करना नोबल प्रोफेशन है, इसलिए मेडिकल स्नातक नाम के आगे डॉक्टर जोड़ रहे हैं। नियमानुसार पीएचडी (डॉक्टर ऑफ फिलॉस्फी) या अन्य डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त व्यक्ति ही अपने नाम के आगे डॉक्टर लिख सकता है, लेकिन विभिन्न चिकित्सीय पद्धतियों में सिर्फ बैचलर डिग्रीधारी, इंडियन मेडिकल कौंसिल एक्ट 1956, आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम 1987 के तहत प्रैक्टिस के लिए पंजीयन करवाकर नाम के आगे डॉक्टर लिख रहे हैं। अब इस दौड़ में डिप्लोमा, डिग्री करने वाले फार्मासिस्ट और डिग्री करने वाले फिज़ियोथेरेपिस्ट भी कूद पड़े है यहाँ तक की वो तो सुप्रीम कोर्ट तक में चले गए है माजरा क्या है नाम के आगे डॉक्टर लगवाना है। बिना ये जाने की डॉक्टर का मतलब क्या है बखेड़े की जड़ है बैचलर डिग्री लेने के बाद डॉक्टर लिखना ।

नोबल प्रोफेशन के नाम का उठाया गया फायदा

बीमारों का इलाज करना नोबल प्रोफेशन है, इसलिए मेडिकल स्नातक नाम के आगे डॉक्टर जोड़ रहे हैं। नियमानुसार पीएचडी (डॉक्टर ऑफ फिलॉस्फी) या अन्य डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त व्यक्ति ही अपने नाम के आगे डॉक्टर लिख सकता है, जबकि विभिन्न चिकित्सीय पद्धतियों में बैचलर डिग्रीधारी सिर्फ इंडियन मेडिकल कौंसिल एक्ट 1956, आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम 1987 के तहत प्रैक्टिस के लिए पंजीयन करवाकर नाम के आगे डॉक्टर लिख रहे हैं।

आरटीआई से खुली पोल
डीबी स्टार ने एमबीबीएस, बीएएमएस, बीएचएमएस और बीयूएमएस डिग्रीधारियों द्वारा खुद को डॉक्टर लिखने के आधार के बारे में आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी। इसके जबाव में बीएएमएस, बीएचएमएस, बीयूएमएस के लिए कहा गया, ये बैचलर डिग्री हैं, न कि डॉक्टरेट। एमबीबीएस के संदर्भ में कोई जवाब नहीं दिया गया है, पर मप्र एमसीआई के प्रेसीडेंट ने टेलिफोनिकली बातचीत में स्वीकारा है, एमबीबीएस बैचलर डिग्री है, डॉक्टरेट नहीं यानी एमसीआई खुद भी मान रहा है, उक्त स्नातकों को बैचलर डिग्री दी जाती है, डॉक्टरेट नहीं।

नोबल प्रोफेशन के चलते लिखा जाता है डॉक्टर

भारत में नाम के आगे डॉक्टर लिखने के लिए पीएचडी या एमडी जैसी डिग्री होना अनिवार्य है। गोवा में एलएलबी कर वकालत करने वाले भी खुद को पुर्तगाली कानून के समय से डॉक्टर लिख रहे हैं, जबकि नियमानुसार उन्हें डॉक्टर लिखने का अधिकार नहीं है। इंडियन मेडिकल कौंसिल एक्ट 1956 की धारा 15 (2) एवं मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम 1987 की धारा 24के प्रावधानों के अनुसार मार्डन साइंटिफिक मेडिसिन में चिकित्सा व्यवसाय करने के लिए मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम 1987 की धारा 11 में संधारित स्टेट मेडिकल रजिस्टर में नाम दर्ज होना अनिवार्य है। इसमें बताया गया है किसी भी चिकित्सा पद्धति में मान्यता प्राप्त चिकित्सीय अर्हता रखने वाला चिकित्सक नियमानुसार पंजीबद्ध होने के बाद स्वयं को डॉक्टर लिख सकता है। अन्य कोई अगर चिकित्सीय व्यवसाय के लिए खुद को डॉक्टर लिखता है तो अपराध माना जाएगा, लेकिन यह उल्लेख नहीं है, चिकित्सीय शिक्षा की बैचलर डिग्रीधारी व्यक्ति को डॉक्टर लिखने की अनुमति है या नहीं।

स्पष्ट गाइडलाइन बने

जैसे पीएचडी करने के बाद नाम के आगे डॉक्टर लिखने की पात्रता है, वैसे ही चिकित्सीय शिक्षा में एमडी की डिग्री के बाद ही व्यक्ति नाम के आगे डॉक्टर लिख सकता है। एमबीबीएस, बीएएमएस, बीएचएमएस और बीयूएमएस चिकित्सीय बैचलर डिग्री हैं। सिर्फ चिकित्सा व्यवसाय के चलते इन डिग्रियों के धारक स्वयं को डॉक्टर लिखते हैं। केंद्र और राज्य को इसके लिए स्पष्ट गाइडलाइन और नियम बनाना चाहिए।

राकेश पांडेय, राष्ट्रीय प्रवक्ता आयुष एसोसिएशन

चलन में आ गया शब्द

एमबीबीएस, बीएएमएस, बीएचएमएस और बीयूएमएस डिग्री अलग-अलग चिकित्सीय पद्धतियों में बैचलर डिग्री हैं। देश में चिकित्सीय प्रैक्टिस करने वालों को आमतौर पर डॉक्टर कहा जाता है। यही चलन में आ गया है। यह नोबल प्रोफेशन है, इसके चलते डॉक्टर शब्द को सामाजिक मान्यता मिली है। इसीलिए चिकित्सीय बैचलर डिग्री होने पर डॉक्टर लिखने का चलन है। चिकित्सीय बैचलर डिग्रीधारी को डॉक्टर लिखने की पात्रता है बिना ये जाने की इसका मतलब क्या है लेकिन होड़ लगी है एक नाम को पाने की I ये लड़ाई ख़त्म नहीं होने वाली है अब इस नाम की ख्यायती पाने के लिए PHYSIOTHERAPIST भी कूद पड़े है और सुप्रीम कोर्ट में 2019 से उनका भी केस चल रहा है, इसके अलावा राजस्थान में फार्मासिस्ट भी डिप्लोमा और डिग्री करके नाम के आगे डॉ लिखने का अधिकार मांग रहे हैं I

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